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आयुर्वेदा के तीन प्रमुख दोष

वात (Air-वायु) :
वात शरीर की गति और संचार की जिम्मेदारी निभाता है। यह शरीर में सभी प्रकार की गति – जैसे रक्त संचार, श्वसन, स्नायु संकोचन, और तंत्रिका तंत्र के कार्यों को नियंत्रित करता है। वात दोष का संतुलन बनाए रखना मानसिक स्पष्टता और शारीरिक गतिशीलता के लिए आवश्यक है। जब वात दोष असंतुलित होता है, तो यह चिंता, तनाव, नींद की समस्या, और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है।
प्राकृतिक गुण: शुष्क, हल्का, ठंडा, गति
संतुलित वात: ऊर्जा और सक्रियता
वात असंतुलन के लक्षण: शरीर में सूजन, सूखा त्वचा, मोटापा कम होना, मानसिक अस्थिरता

पित्त (Agni - अग्नि):
पित्त दोष अग्नि (आग) और जल (पानी) तत्वों से बना होता है। यह शरीर में पाचन, ऊष्मा, और परिवर्तन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। पित्त का मुख्य कार्य पाचन और शरीर में भोजन के द्वारा ऊर्जा का निर्माण करना है
प्राकृतिक गुण: तेज, गर्म, तीव्र, तैलीय, हल्का।
संतुलित पित्त: उर्जा, पाचन शक्ति, और मानसिक स्पष्टता।
पित्त असंतुलन के लक्षण: गुस्सा, जलन, मुंहासे, और पाचन समस्याएं।

कफ (Kapha):
कफ स्थिरता, संतुलन और संरचना को बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर में तरल पदार्थों जैसे रक्त, लसीका, और अन्य तरल पदार्थों को नियंत्रित करता है और कोशिकाओं की सुरक्षा और पोषण का काम करता ह यह दोष मुख्य रूप से जल और पृथ्वी तत्वों से संबंधित है और शरीर में स्थिरता, संजीवनी शक्ति, और ताजगी बनाए रखने में मदद करता है
प्राकृतिक गुण: ठंडा भारी, चिकना, स्थिर
संतुलित कफ: स्थिरता और संतुलन, ऊर्जा की स्थिति में वृद्धि, शरीर और मन में शांति
कफ असंतुलन के लक्षण: वजन का बढ़ना, अधिक नींद, थकान और आलस्य, बलगम या श्वसन समस्याएँ, पाचन की धीमी गति